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माफिया शूटर श्रीप्रकाश शुक्‍ला की धमकी से भूमिगत हो गए थे हरिशंकर तिवारी

शिवकुमार

गोरखपुर। नब्बे के दशक में एक नए लड़के का उदय हुआ, नाम था श्री प्रकाश शुक्ला. चिल्लूपार विधानसभा का एक गांव है मामखोर जहां वह पैदा हुआ था. शरीर से मजबूत था तो परिवार ने पहलवानी में भेज दिया. ‘जिसके पैरों में जान होती है वह टिक सकता है,’ ‘जिसकी भुजाओं में दम होता है वही बाजी पलट सकता है’. शुक्ला ने अखाड़े से यही ककहरा सीखा था. उसकी बहन से एक लड़के ने छेड़खानी कर दी. तमतमाए श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसका मर्डर कर दिया. जब तक पुलिस उसकी तलाश करती वह बैंकॉक निकल गया. तरुणाई का समय था, वहां उसने पैसे और पावर का जलवा देखा. कुछ हकीकत में कुछ फिल्मों में. कई साल बाद जब वह वापस लौटा तो उसके इरादे स्पष्ट थे नीयत साफ कि उसे सिर्फ और सिर्फ डॉन बनना है. संयोग से बिहार के सूरजभान श्रीप्रकाश के आका हो गए. श्री प्रकाश शुक्ला ने पहले छुटभैयों को निशाने पर लिया. कई लोगों को खुद मारा. घोषणा कर दी कि रेलवे के ठेके पट्टे उसके सिवा कोई नहीं लेगा. चाहे कोई कितना भी बड़ा हो रंगदारी देनी होगी. उस इलाके में नई उम्र के बेअंदाज लोगों पर तंज कसा जाता है कि ‘4 दिन क लवंडा हउएं’. श्रीप्रकाश शुक्ला ने तय कर लिया जब तक बूढ़े बरगदों को नहीं मारेगा उसे कोई गंभीरता से नहीं लेगा. उसने वीरेंद्र प्रताप शाही और हरिशंकर तिवारी को सीधी धमकी दे दी. तिवारी तक साफ संदेश पहुंचा दिया कि चिल्लूपार से वह चुनाव लड़ेगा. शाही तब तक लापरवाह हो गए थे. ठाकुरों की ठसक में न वह डरे न अपनी दिनचर्या बदली. 1997 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में उन्हें दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया तब न उनके साथ कोई हथियार था न कोई साथी. कहा जाता है कि श्रीप्रकाश शुक्ला का अगला निशाना हरिशंकर तिवारी थे. लेकिन तिवारी भूमिगत हो गए. इलाके के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने श्रीप्रकाश शुक्ला के मामा को साथ ले लिया. अगर कहीं गाड़ी से उतरना होता तो पहले शुक्ला के मामा उतरते फिर तिवारी. मामा ने शुक्ला को समझाने की कोशिश की लेकिन जब वह नहीं माना तो कह दिया कि हरिशंकर तिवारी को मारने से पहले उसे अपने मामा की लाश से गुजरना होगा. शुक्ला के दिन पूरे हो गए, उसने सीएम कल्याण सिंह की सुपारी ले ले ली. इसके बाद पुलिस ने उसे एनकाउंटर में मार गिराया. इस तरह बंदूकों के बल पर राजनीति में एंट्री करने का ख्वाब पाले शुक्ला को पुलिस ने दूसरे लोक में पहुंचा दिया। लेकिन राजनीति का जो अपराधीकरण हो चुका था उसमें कोई कमी नहीं आई. चिल्लूपार से हरिशंकर तिवारी जीतते रहे. महाराजगंज से अमरमणि त्रिपाठी,  मऊ से मुख्तार, आजमगढ़ से रमाकांत, उमाकांत, जौनपुर में धनंजय सिंह का सिक्का चलने लगा. समय का पहिया फिर पलटा है. हरिशंकर तिवारी नहीं रहे. मुख्तार और अमरमणि जेल में है. रमाकांत-उमाकांत का समय जा चुका है. बृजेश अपने को बचाए रखने में सफल रहे हैं. धनंजय अपना पुराना रुतबा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं.  लेकिन इतना तय है कि हरिशंकर तिवारी ने जो लकीर खींची थी उस लकीर पर चलने वाले आज भी कम नहीं हैं. ऐसे कई लोग आज संसद और विधानसभा की शोभा बढ़ा रहे हैं.  राजेश त्रिपाठी कभी हरिशंकर तिवारी के साथ हुआ करते थे. बाद में बागी हो गए. राजेश त्रिपाठी ने बड़हलगंज में सरयू के किनारे लाशों को जलाने के लिए एक नए तरीके का श्मसान बनवाया जिसका नाम मुक्तिपथ रखा गया. मुक्तिपथ के निर्माण के बाद राजेश त्रिपाठी को ‘श्मसान बाबा’ कहा जाने लगा. राजेश त्रिपाठी बीजेपी से चिल्लूपार से विधायक हैं. इसी मुक्तिपथ में हरिशंकर तिवारी का अंतिम संस्कार किया जाना है।

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