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दबंगों से लड़ना और प्रशासन से कभी भी पंगा न लेने की नीति पर हरिशंकर तिवारी ने खड़ा किया था पूर्वांचल में अपना साम्राज्‍य

शिवकुमार

गोरखपुर। पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी जिनका लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को गोरखपुर में निधन हो गया। गोरखपुर विश्वविद्यालय से राजनीति शुरू करने वाले हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल के माथे पर लकीर खींच दी. उनसे पहले क्राइम कुंडली वाले लोग नेताओं के इशारे पर काम करते थे. लेकिन हरिशंकर तिवारी ने सबसे पहले यह बात समझी कि अगर राज करना है तो खुद राजनीति में उतरना होगा. अगर हम जिताने का दम रखते हैं तो जीत क्यों नहीं सकते. हां इसके लिए कुछ नियम कायदे बनाने होंगे और उनका कायदे से पालन करना होगा। हरिशंकर तिवारी ने तय कर रखा था कि आम पब्लिक को कभी परेशान नहीं करना है. गरीबों और मजलूमों के साथ खड़े होना है. लड़ना उससे है जिसकी तूती बोलती हो उसको ऐसे पटखनी देनी है कि बड़ा संदेश जाए और छोटे-मोटे लोग अपने आप शरणागत हो जाएं. जो शरण में आ जाए हर हाल में उसकी रक्षा करनी है, चाहे उसने कुछ भी किया हो. प्रशासन से सीधे पंगा नहीं लेना है. काम कुछ इस तरह से करना है कि प्रशासन नाराज न हो साथ दे. गांव की राजनीति से लेकर स्कूल कॉलेज तक अपने गुट तैयार करने हैं, ताकि लोगों की जुबान पर नाम आता रहे. ऐसे लोगों की फौज तैयार करनी है जो एक इशारे पर मरने मारने पर उतारू हों। कुछ इस तरह के फॉर्मूले हरिशंकर तिवारी ने जवानी में ही समझ लिए थे. गोरखपुर जिले की विधानसभा सीट है चिल्लूपार, यहीं के एक गांव टांडा में हरिशंकर तिवारी का जन्म हुआ था. हरिशंकर तिवारी पढ़ाई करने गोरखपुर पहुंचे थे. गुरु गोरखनाथ की धरती गोरखपुर में तब मठ का सिक्का चलता था. गोरक्षनाथ पीठ को कोई चुनौती देने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. दिग्विजय नाथ से लेकर महंत अवैद्यनाथ के जमाने तक दरबार लगते रहे और फरमान जारी होते रहे. प्रशासन की हिम्मत नहीं होती थी कि उसे नकार सके. संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास करके आए कुछ नौकरशाहों को यह बात खलती थी. लेकिन बस नहीं चलता था. राज्य में कांग्रेस की होती. महंत राजपूत होते और आरएसएस में उनका दबदबा होता. दबदबा ऐसा था कि मठ के आगे सीएम की भी नहीं चलती।

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