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इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: नगर पालिका को दुकान के बकाया किराये की भू-राजस्व प्रक्रिया अपनाकर वसूली करने का अधिकार नहीं

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नगरपालिका परिषद की दुकानों के किराया वसूली को लेकर बड़ा फैसला दिया है। शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नगर पालिका द्वारा दुकान के बकाया किराया वसूली के लिए भू राजस्व वसूली के तरीके को अपनाना  गलत माना है। हाईकोर्ट ने कहा है कि नगर पालिका को धारा 173-ए के तहत  दूकान के किराया की वसूली में भू-राजस्व वसूली प्रक्रिया अपनाने का अधिकार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय तथा  न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने बरेली के मंजीत सिंह व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचियों ने बरेली नगर पालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी द्वारा जारी किए गए वसूली नोटिस और धारा 173-A  के अधीन  भू-राजस्व अधिनियम के तहत कलेक्टर द्वारा जारी किए गए वसूली प्रकिया को चुनौती दी थी। याचियों का कहना था कि नगर पालिका से आवंटित दुकान का बकाया किराया धारा – 292 के तहत वसूल किया  जा  सकता है। यह तर्क दिया गया कि भूमि पर किराया देय नहीं है और इसे धारा 173-ए या धारा 291 के तहत भू-राजस्व के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है। बता दें कि धारा 173-A या धारा 291 के तहत भू-राजस्व के रूप में कलेक्टर को भूमि पर भू राजस्व के रूप में किराया वसूल  करने का अधिकार देता है। लेकिन नगर पालिका परिषद की दुकान का बकाया किराया वसूलना इनके क्षेत्राधिकार में नहीं आता। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कलेक्टर द्वारा जारी  वसूली प्रमाण पत्र और वसूली नोटिस को अधिकार क्षेत्र के बाहर होने के कारण रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा नगर पालिका अधिनियम किसी दुकान के किराए के बकाया को भू राजस्व के बकाया के रूप में वसूल करने का अधिकार नहीं देता है। किसी भी बकाया के भुगतान के लिए बकाएदार को 15 दिन की अवधि प्रदान की जाती है। यह भी माना गया कि उक्त अवधि के भीतर अपना बकाया पूरा करने में विफल रहने के बाद ही अधिनियम के अध्याय छह के तहत आगे की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।  लेकिन भू राजस्व के तहत किराये की वसूली नहीं जा सकती है।

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