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खुशबूओं वाले फूलों का बड़ा बाजार था बैधनाथ चौराहा

उबैदुर्रहमान सिद्दीकी (इतिहासकार एवं लेखक)

गाजीपुर। शहर गाज़ीपुर के बैधनाथ चौराहे के उत्तरीय डाक्टर राही मासूम रजा मार्ग पर बैधनाथ मिश्र की कोठी, आसिया मंजिल (खान बहादुर अमीनुल्लाह, खान बहादुर रफीउल्लाह , वकील रईस सिविल, क्रिमिनल) नजीर मंजिल, हसन मंजिल ( खान बहादुर मौलवी कारी अहमद वकील, मौलवी अबुल हसन, आईएस, कश्मीर श्रीनगर स्टेट 1938, एजुकेशन डायरेक्टर, बशीर मंजिल (सैयद बशीर हसन आब्दी पिताश्री डाक्टर राही मासूम रजा), खान बहादुर सिफात अहमद खान वकील (रईस, जमीनदार, अहमद हसन खान वारसी, भूतपूर्व नगरपालिका चेयरमैन) आदि कोठियों के साथ एक कोठी समद मंजिल (खान बहादुर मौलवी अब्दुल समद ,वकील, शायर तथा स्वतंत्रता संग्रामी) की है। बैधनाथ चौराहे पर फूलों के बाजार की बहार रहा करती, जहां तरह तरह के खुशबूओं वाले फूल दूर दूर से लाकर व्यापारी बेचा करते थे. इनके पूर्व तथा पश्चिमी क्षेत्र में ऐसी बस्तियां आबाद थी जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे? इनका अपना बड़ा दिलचस्प इतिहास रहा है. ब्रिटिश काल तथा उसके पूर्व में यह इलाका एक तरह से शहर का सिविल लाइन एरिया तथा अपने समय का पाश इलाके से जाना जाता था. इन कोठियों के पश्चिमी क्षेत्र में एक मुहल्ला साबुनगढ़ है, जहां साबुन बनाने के कई कारखाने थे जिनका बड़े पैमाने में व्यापार अन्य जनपदों तक था. ( नगरपालिका में एक मुहल्ला दर्ज है) उसके बगल में एक मुहल्ला वैध टोली है, जहां जनपद के मशहूर वैद्यों के अनेक घर थे. उसी से लगा एक मुहल्ला बेगम कटरा है जहां दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं बिकती थी तथा पास में मुहल्ला मंडी अकबराबाद है जहां आटा, दाल, चावल, घी, तेल , मिर्च मसाले की मार्केट थी. वही एक मुहल्ला रायगंज है जिसको नवाब फजल अली (1742/62) के गाजीपुर प्रशासनिक विभाग के एक उच्चाधिकारी नवल राय ने आबाद किया था, जिसमें अनेक लाला परिवार (वर्मा, श्रीवास्तव ) जो पढ़े लिखे थे, अन्य जनपदों से आकर बसे, जिनमें नामी गिरामी वकील, मुख्तार,शायर, मुंशी थे. इन कोठियों के  पूर्व रोड पार में एक मुहल्ला सट्टी मस्जिद है जहां शहर की थोक अनाज मंडी और सब्जी मंडी थी. फिशर गिल ने इसके बारे में, गाजीपुर गजेटियर खंड 13 भाग 3 में लिखा है कि कुछ मुस्लिम व्यापारियों ने मिलकर इस सट्टी के कोने में अपनी नमाज हेतु एक मस्जिद बनाने के कारण अब एरिया सट्टी मस्जिद से विख्यात है. चौराहा बैथनाथ जो नियर प्रकाश टाकीज उत्तर है,एक नामी गिरामी जमींदार ब्राह्मण मिश्र परिवार के नाम पर एक कोठी थी,जहां आज राजा कटरा है. उसी इमारत के सामने पश्चिम तरफ बाबू शीतल सिंह वकील, रईस जमींदार का निर्माणकर्दा  65 कमरों पर आधारित चार मंजिला छात्रावास था जिसमे अन्य जनपदों तथा जनपद गाजीपुर के विभिन्य कोनो से आए छात्रों के निवास थे जो यहां रहकर स्कूलों में पढ़ा करते थे. बाबू शीतल सिंह के दो बेटे बाबू सहदेव सिंह ( लाल कोठी आमघाट, रीगल टाकीज) तथा बाबू मुनेश्वर सिंह ( पीली कोठी) थे. उसी रोड पर छात्रावास से समद मंजिल के मध्य मटन मार्केट तथा मछली बाजार था जो अब बिगड़ कर मच्छरहट ( मुहल्ला मच्छरहट्टा ) हो गया। गाजीपुर शहर में शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार में इन कोठियों का बड़ा हाथ था, जिनमे सर सैयद द्वारा स्थापित विक्टोरिया हाइ स्कूल (1863 ), चश्मय रहमत ओरिएंटल कॉलेज (1869) तथा मुहम्मडन एंग्लो वर्नाकुलर स्कूल (1898, संस्थापक वकील तथा स्वतंत्रता संग्रामी मौलवी अब्दुल अज़ीम जो आज एम०ए०एच० इंटर कॉलेज ( मुहम्मडन एंड हिंदुस्तानी कॉलेज है) थे. जबकि 1881 से पूर्व डीoएoवीo इंटर कॉलेज की नीव बाबू श्याम प्रसाद के बाबू चंद्र प्रसाद दयानंद एंग्लो वर्नाकुलर स्कूल के नाम से नीव रख चुके थे. उपरोक्त सभी लोग जब गाजीपुर में मदरसा विक्टोरिया हाइ स्कूल की बुनियाद (1863) सर सैयद अहमद खान (सब जज) ने मुहल्ला आमघाट में रखी थी (जो अब शिवनाथ गर्ल्स इंटर कॉलेज है), उनका साथ दिया था। मुहल्ला मच्छरहट्टा के समद मंजिल में एम एच इंटर कॉलेज (50 वर्ष तक लगभग रहा है) , में, जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने हेतु चंदा इकट्ठा करने का सवाल आया तो वहां से एक वफद नवाब मोहसिनुल मुल्क सैयद मेहदी अली खान की सरपरस्ती में 1901 में गाजीपुर आया था.  उस समय एम एच इंटर कॉलेज कक्षा पांच तक एम0ए0वी0 के नाम से था, उसके ग्राउंड में एक शानदार मुशायरा वास्ते अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के चंदा हेतु आयोजन किया गया जिसमे मदरसा चश्मय रहमत के मैनेजर एवं प्रिंसिपल अल्लामा शमशाद लखनवी फिरंगी महली ने मुशायरे से पूर्व वफद की शान में एक सिपासनामा पढ़ा था, जो इस तरह से था (चूंकि इसमें तीस आशार है, उसके कुछ बंद देखे ):

जमा हैं वह उलूम के सामान

दंग है जिनको देख कर इदराक

मर्सिया पढ़ते हैं जो रोज तेरा

अब वह हैं अपने फेल पर गमनाक

जो कहे मुंह से कर दिखाए उसे

महसीनुलमुल्क की तरह बेबाक

बांधकर यूनिवर्सिटी की धुन

फिरते हैं शहर शहर फ़रहतनाक

ए ख़ुशा बख्त शहर गाजीपुर

कि है यह भी मुकाम इस्तदराक

आज खुश होगी रूह सर सैयद

अपने प्यारे से देख कर यह तपाक

सई अब्दुल समद का है यह असर

जमा हैं इस जगह जो खुश पोशाक

ऐसे ऐसे जब उसके हामी हैं

अब नहीं कौम को किसी से बाक

तुम भी शमशाद अब दुआ उन्हें दो

गनीम को जहर दोस्त को तिरयाक

तत्कालीन स्कूल के प्रिंसिपल खालिद अल्वी साहब थे जिनकी निगरानी में दस वर्ष पूरा होने पर 1908 में वार्षिकोत्सव का आयोजन किया गया जिसमे तुर्की की मशहूर लेखिका अतिया फैजी जो मुस्लिम महिलाओं की आधुनिक शिक्षा के कारण विख्यात थी, उन्हे बताैर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया, जो मुंबई आई हुई थी. उन्हें रेलवे स्टेशन से शरफुन्निसा फर्स्ट लेडी ऑफ द सिटी थी , अपनी बग्घी पर ले आई थी. अतिया फैजी चुंकि बहुत खूबसूरत थी, इसलिए उनके कई दीवानों में अल्लामा शिबली नुमानी और अल्लामा इकबाल भी थे, इन दोनों लोगो के प्रेमपत्र किताब की शक्ल में छप चुके है. अब एम 0ए0एचO स्कूल के मैनेजर नामी वकील हाजी वारिस हसन खान साहब तथा प्रिंसिपल खालिद अमीर है, जिनके नेतृत्व में स्कूल तरक्की की तरफ अग्रसर है। 1936 में एम ए एच इंटर की सोसाइटी एम ए वी, मच्छरहट्टा के रजिस्ट्रेशन सदस्यों में एक नाम डाक्टर रामदरस राय का भी था, वैसे इन दोनों मुस्लिम शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण में बाबू शीतल सिंह ( वकील ) तथा डाक्टर राम दरस राय ( स्टीमर घाट ) का बड़ा योगदान रहा है और ये लोग कोलेज की एक्जीक्यूटिव कमेटी में थे. अगर बाबू शिवनाथ सिंह का नाम न लिया जाए तो न इंसाफी होगी क्यूंकि उनके बेटो ने अपनी भव्य कोठी को बच्चियों की शिक्षा हेतु दान ( मियांपुरा) दे दी थी जहां आज भी सरकारी पाठशाला है।

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