वाराणसी। यूं तो चातुर्मास वह समय है जब भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु शनयकाल में जाते हैं जिसके बाद कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी पर पुनः निद्रा से जागते हैं। वहीं, सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। इस बार सावन माह की पहली एकादशी (कामिका एकादशी) 31 जुलाई को मनाई जाएगी। काशी के पंचांग के अनुसार कामिका एकादशी पर दोपहर में 3:55 पर शिववास योग बन रहा है। शिववास योग में देवों के देव महादेव अपनी अर्धांगिनी मां पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान होते हैं। इसके बाद भोलेनाथ नंदी पर सवार होंगे, ऐसे में कहा जाता है कि शिववास योग में भगवान शिव का अभिषेक करने से साधकों के सभी दुख नष्ट होते हैं और उन्हें सुख की प्राप्ति होती है। कामिका एकादशी पर शिववास योग के अलावा बालव और कौलव करण के योग भी बन रहे हैं, साथ ही रोहिणी नक्षत्र का संयोग भी बन रहा है। कामिका एकादशी का व्रत रखने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ये व्रत पितृ दोष तक से मुक्ति दिलाता है। कहते हैं इस एकादशी पर जो व्यक्ति तीर्थ स्थानों पर नदी, कुंड, सरोवर में स्नान करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।