वाराणसी। श्रावण मास की नागपंचमी नौ अगस्त को मनाई जाएगी। श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान शिव के दरबार की पूजा आराधना के साथ ही नागदेवता की भी पूजा-अर्चना श्रद्धा, आस्था और भक्तिभाव के साथ करने की धार्मिक मान्यता है। पंचमी तिथि के स्वामी नागदेवता माने गए हैं, इसलिए इस तिथि के दिन नागदेवता के पूजन की परंपरा चली आ रही है। काशी के पंचांग के अनुसार श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आठ अगस्त की अर्धरात्रि 12:37 बजे लगेगी और नौ अगस्त को अर्धरात्रि के बाद 3:15 बजे तक रहेगी। हस्त नक्षत्र आठ अगस्त की अर्धरात्रि 11:34 बजे से नौ अगस्त को अर्धरात्रि के बाद 2:45 बजे तक रहेगी। सिद्धयोग आठ अगस्त को दिन में 12:39 बजे से नौ अगस्त को दिन में 1:45 बजे तक रहेगा। इस योग में की गई पूजा अर्चना विशेष फलदायी होगी। गरुण पुराण के अनुसार मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर नाग देवता का चित्र चिपकाकर या लाल चंदन, काले रंग अथवा गोबर से नागदेवता बनाकर विधि-विधानपूर्वक दूध, लावा अर्पित करके धूप-दीप से पूजन करते हैं। इससे नाग देवता प्रसन्न होते हैं और परिवार सर्पदंश से भयमुक्त रहता है। नागलोक की देवी मां मनसा देवी हैं और नागपंचमी के दिन इनकी भी पूजा का विशेष फलदायी मानी गई है। इनकी पूजा से वंशवृद्धि के साथ ही सुख समृद्धि भी मिलती है। नागपंचमी पर कालसर्प की पूजा की विशेष महिमा है। श्रावण मास में नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग का निवारण विधि-विधानपूर्वक करके इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। रुद्र एवं नागलोग के नाम पर 12 तरह के कालसर्प योग हैं। इसमें अनंत, पुलित, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधर और शेषनाग शामिल हैं। इन द्वादश योग में कर्कोटक, शंखचूड़ व विषधर विशेष प्रभावी माने जाते हैं। कालसर्प योग विभिन्न प्रकार के लाभ के अवसर के साथ ही ग्रहदशा के अनुसार अनेक प्रकार की परेशानियों को भी उत्पन्न करता है।