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 मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर में अंर्तराष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का हुआ शुभारंभ

 

लखनऊ। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग, मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर तथा एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बैंकॉक द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किए जा रहे ‘एनर्जी ट्रांजिशन एंड इनोवेशन इन ग्रीन टेक्नोलॉजी’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन आज विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में हुआ। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो निवास सिंह, निदेशक, अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान, ग्वालियर रहे जबकि उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो दुर्ग सिंह चौहान, संस्थापक कुलपति, यू पी टी यू, लखनऊ ने की। उद्घाटन समारोह में मा. कुलपति प्रो जय प्रकाश सैनी की भी गरिमामयी उपस्थिति भी रही। आरम्भ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन तथा वाग्देवी और पंडित मालवीय के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। विभागाध्यक्ष प्रो वी के गिरि ने स्वागत वक्तव्य दिया जबकि सम्मेलन के संयोजक प्रो सुधीर कुमार श्रीवास्तव ने दो दिवसीय सम्मेलन की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो श्री निवास सिंह ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग कोई नई परिघटना नहीं है। बहुत पहले से मनुष्य प्राकृतिक रूप से उपलब्ध ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग, सीमित ढंग से ही सही, करता था। पर ऊर्जा की बेतहाशा बढ़ रही मांग और जल्दी सब कुछ हासिल करने की प्रवृत्ति ने कोयले और हाइड्रोकार्बन ईंधन पर निर्भरता बढ़ाई। लेकिन यह समझ देर से विकसित हुई कि कोयले और हाइड्रोकार्बन स्त्रोतों की बहुत सारी सीमाएं और कमजोरियां हैं। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की प्राकृतिक रूप से उपलब्धता बहुत है पर उनके प्रयोग में सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती है कि उनकी क्षमताओं को कैसे बढ़ाया जाए और उसका भंडारण कैसे किया जाए। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सबसे विश्वसनीय और सुलभ सौर ऊर्जा है। इसीलिए, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा पर सबसे अधिक बल दिया जा रहा है।अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में यू पी टी यू के संस्थापक कुलपति प्रो दुर्ग सिंह चौहान ने कहा पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था ऊर्जा पर निर्भर है। और ऊर्जा के लिए दीर्घकालिक और सतत (सस्टेनेबल) स्त्रोतों की खोज और उन्नत प्रौद्योगिकी का विकास आज की जरूरत। उन्होंने तकनीकी विकास के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं के अंतर्संबंधों की चर्चा करते हुए कहा इंजीनियरों से अपील की कि नवीन प्रौद्योगिकी का विकास करते समय उसके सामाजिक आर्थिक प्रभावों पर भी विचार करें। उन्होंने ऋग्वेद की ऋचा का उल्लेख करते हुए कहा कि कहीं से भी समाजोपयोगी और शुभ विचार आएं उनका स्वागत करना चाहिए और सम्मेलन शोधकर्ताओं को इस तरह का अवसर उपलब्ध कराते हैं।उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मा. कुलपति प्रो जय प्रकाश सैनी जी ने विश्वविद्यालय द्वारा शोध को बढ़ावा देने के उपायों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारा प्रयास रहेगा कि आने वाले समय में एम एम एम यू टी की ख्याति शोध आधारित विश्वविद्यालय के रूप में हो। इसलिए, विश्वविद्यालय शोध और उसकी गुणवत्ता को लेकर गंभीरतापूर्वक कार्य कर रहा है। विश्वविद्यालय का यह प्रयास है कि विश्वविद्यालय के शिक्षक और विद्यार्थी न केवल गुणवत्ता पूर्ण शोध कर उसे प्रकाशित करें, बल्कि उसे पेटेंट में भी बदलें। क्योंकि पेटेंट प्राप्त कर तकनीक को बाजार में लाने से ही तकनीकी विकास का लाभ आमजन को मिलेगा।  उद्घाटन सत्र में अतिथियों ने समारोह की स्मारिका का विमोचन भी किया। उद्घाटन सत्र में अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट कर विभागाध्यक्ष एवं अन्य शिक्षकों ने सम्मानित किया।  आयोजन अध्यक्ष डॉ प्रभाकर तिवारी ने अतिथियों के प्रति सभागार ज्ञापन किया जबकि डॉ अभिजित मिश्र ने सत्र का संचालन किया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बैंगकॉक के प्रो वीराकर्ण ओंगसकूल ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा हेतु विकसित की जा रही प्रौद्योगिकी अफोर्डेबल एवं सस्टेनेबल होनी चाहिए। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी की तारीफ करते हुए कहा कि भारत को अफोर्डेबल और सस्टेनेबल प्रौद्योगिकी विकसित करने में महारत हासिल है। यही कारण है कि एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, जोकि थाईलैंड का महत्वपूर्ण तकनीकी संस्थान है, वह लगातार भारतीय तकनीकी संस्थाओं से सहयोग बढ़ाने का इच्छुक है। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन शुरुआत है, अभी एम एम एम यू टी और ए आई टी और क्षेत्रों में सहयोग की योजना पर कार्य कर रहे हैं। अपने संबोधन में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रो जे जी सिंह ने कहा कि अगले कुछ दशकों में विश्व की 70 फीसदी आबादी शहरों में निवास करेगी और ऐसे में ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों के भरोसे नहीं बैठा जा सकता है। इसलिए, वैकल्पिक स्रोतों का विकास करना होगा साथ ही वर्तमान में प्रयुक्त स्त्रोतों की कार्यदक्षता को बढ़ाने की दिशा में भी शोध की जरूरत है। अपने संबोधन में आई आई रूड़की के प्रो मनोज त्रिपाठी ने कहा कि अभी पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। इसलिए परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों पर थोड़ी निर्भरता बनी रहेगी, विशेषकर विकासशील देशों के लिए तो बहुत मुश्किल होगा परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग बंद करना। यही कारण है कि विशेषकर विकासशील देशों को पर्यावरण संरक्षण हेतु हुए पेरिस समझौते में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर पाना मुश्किल होगा। एम एन एन आई टी प्रयागराज के प्रो आशीष कुमार सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ग्रीन टेक्नोलॉजी ही सस्टेनेबिलिटी ला सकती है। और सस्टेनेबिलिटी विकल्प नहीं है, बल्कि वह भविष्य है। उन्होंने कहा कि ग्रीन टेक्नोलॉजी का अर्थ केवल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग ही नहीं है बल्कि वर्तमान स्त्रोतों का कुशल और सावधान उपयोग भी ग्रीन टेक्नोलॉजी के दायरे में आता है। आई आई टी बी एच यू से आए प्रो संतोष कुमार सिंह ने कहा कि ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए हमे केवल शोध संस्थाओं के भरोसे नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे स्नातक, परास्नातक, और शोध छात्रों में भी बहुत प्रतिभा और बहुत से उपयोगी विचार हैं। हमें उनकी प्रतिभा और मेधा को इस दिशा में निर्देशित करना चाहिए तभी ग्रीन टेक्नोलॉजी की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य संभव होगा। जॉन डियर इंक, अमेरिका के डॉ बी एन सिंह ने अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि कई जगह प्रौद्योगिकी को कार्बन मुक्त करने की बात कही जा रही है। उन्होंने इसके बजाय, विभिन्न स्त्रोतों में उपलब्ध कार्बन का संचयन कर उसका उपयोग करने और निष्प्रयोज्य सामग्री को ऊर्जा में बदलने की दिशा में शोध की जरूरत पर बल दिया। सम्मेलन के आयोजन में डॉ शेखर यादव, प्रो ए के पांडेय, प्रो ए एन तिवारी, डॉ एल बी प्रसाद, डॉ नवदीप सिंह, डॉ अवधेश कुमार, डॉ नीतेश तिवारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

 

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