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गाजीपुर: भरत आगमन, मनावन एवं विदाई के लीला का मंचन देख दर्शको की आंखें हुई नम

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के आठवें दिन रविवार को सकलेनाबाद में भरत आगमन, मनावन और विदाई का मंचन हुआ। हरिशंकरी से भरत जी की शोभा यात्रा शुरू होकर मुरली कटरा, पावर हाउस लाल दरवाजा रोड, झुन्नू लाल चौराहा आमघाट ददरी घाट चौक, महुआ बाग चौराहा होते हुए सकलेनाबाद पहुंची। लीला शुरू होने से पूर्व कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, उप प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष बाबू रोहित अग्रवाल ने प्रभु श्रीराम लक्ष्मण सीता को माला पहनाकर आरती किया। उसके बाद बंदे बाणी विनायकौ आदर्श श्री रामलीला मंडल के कलाकारों द्वारा भरत मनावन व विदाई लीला का भव्य मंचन हुआ। लीला में दर्शाया गया श्री राम  लक्ष्मण सीता बनवास के दौरान भारद्वाज मुनि के आश्रम पर कुछ दिनों तक विश्राम करते हैं। उधर भरत जी को महर्षि वशिष्ठ दूत द्वारा उनके ननिहाल कैकेय देश में रथ भेज कर बुलवाते है। दूत भरत जी को गुरु वशिष्ठ का संदेश देते हुए उन्हें अपने साथ रथ पर सवार होकर अयोध्या चलने के लिए कहते है, तो भरत रथ पर सवार होकर अयोध्या के लिए चल देते हैं। थोड़ी ही देर में भरतजी का रथ अयोध्या नगरी के सीमा पर पहुंचता है तो अयोध्या वासी भरत जी को देखकर अपना मुंह दूसरी ओर घूमा लेते हैं। यह देखकर भरत सोच में पड़ जाते हैं। उधर दासी मंथरा गेट पर  आरती की थाल लिए भरत जी के आने की राह देखती है। जब भरत का रथ महारानी कैकेई के दरवाजे पर पहुंचता है तो मंथरा आदर सत्कार के साथ उन्हें कैकेई के कक्ष में ले जाती है। भरत अपनी माता कैकेई के उदास चेहरा को देखकर पूछते हैं कि माताजी आपने यह हाल क्यों बना रखा है। बताइए पिताजी और भैया राम लक्ष्मण और भाभी सीता कहां है, इतना सुनने के बाद कैकेई ने कहा कि महाराज दशरथ स्वर्ग सिधार गए और राम लक्ष्मण सीता 14 वर्षों के लिए वन चले गए हैं। अब तुम नाश्ता पानी करके राजदरबार में जाकर अयोध्या का राजपाट ग्रहण करो। वहां अयोध्यावासी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। जब भरतजी ने अपने पिता महाराज दशरथ को स्वर्ग सुधारने तथा बड़े भाई श्री राम के वनवास की कहानी सुने तो वह क्रोधित होकर अपनी माता कैकेई को खरी खोटी सुना कर राजदरबार में जाकर अयोध्या का राज ठुकराते हुए सभी अयोध्या वासियो तथा गुरु वशिष्ठ के साथ रथ पर सवार होकर के अपने भाई श्री राम को मनाने के लिए वन प्रदेश के लिए चल देते हैं और वे श्रृंगवेरपुर पहुंच कर वे निषाद राज केवट से श्री राम का पता पूछते हुए भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं। भरत के आने की सूचना लक्ष्मण को मिलती है तो वह तिलमिला कर धनुष बाण लेकर भरत से युध्द करने के लिए तैयार होते हैं तो इसी बीच राम ने लक्ष्मण को समझा बूझाकर शांत किया और भरत के आने की प्रतीक्षा करने लगे। इतने में भारद्वाज मुनि के आश्रम के कुछ दूरी पर भरत का रथ पहुंचता है और रथ से भरत शत्रुघ्न गुरु वशिष्ठ सहित माताएं पैदल ही आश्रम की ओर चल देते हैं। जब श्री राम ने गुरु वशिष्ठ भरत शत्रुघ्न सहित माताओ को आते देखते है तो वे भी चल पड़े।थोड़ी देर में भरत श्रीराम को देखते हैं और उनके चरणों में साष्टांग दंडवत करते हुए जमीन पर लेट जाते हैं। भरत को जमीन पर लेटे देखकर बड़े आदर के साथ भरत को उठाकर अपने गले से लगाते हैं। दोनों भाइयों में समाचारों का आदान-प्रदान होने लगता है इसके बाद भरत अपने बड़े भाई श्री राम को वापस अयोध्या चलने के लिए आग्रह करते हैं। जिसे सुनकर सुनकर श्रीराम ने अयोध्या जाने से इन्कार कर देते हैं और भाई भरत को समझा बूझाकर अपनी चरण पादुका भरत जी को देकर विदा कर देते हैं। भाई-भाई के प्रेम को देखकर वहां उपस्थित दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं। वही श्री राम और भरत के जयकारों से लीला स्थल गूंज उठाता है। इस मौके पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उप मंत्री लव त्रिवेदी, मेला‌प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष बाबू रोहित अग्रवाल, गामा यादव, कृष्णांश त्रिवेदी आदि रहे।

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