गाजीपुर। मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया है कि मंकीपॉक्स मुख्यतः मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षा क्षेत्र क वनो मे पाया जाने वाला एक वायरल जूनोटिक रोग है, जिसका प्रसार यदा- कदा अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में भी पाया गया है। शरीर पर दाने, बुखार और लसिका ग्रंथियों मे सूजन मंकीपॉक्स मे मुख्य प्रारम्भिक लक्षण है, जिसके उपरान्त रोगी में अन्य चिकित्सकीय जटिलतायें विकसित हो सकती है। मंकीपॉक्स सामान्यतः एक स्व- सीमिट रोग है, जिसके लक्षण 2 से 4 सप्ताह तक बने रह सकते है परन्तु कतिपय गंभीर रोगी भी सूचित हो सकते है। रोग की मृत्यु दर 1- 10 प्रतिशत के बीच हो सकती है। मनुष्यों में मंकीपॉक्स रोग पशुओं अथवा अन्य संक्रमित मनुष्यों से संचरित हो सकता है। इस रोग का वायरस ब्रोकन स्किन (प्रदर्शित ना होने पर भी), श्वसन पथ, अथवा श्लेश्मिका झिल्लियों (आंख, नाक या मुंह) के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकता है। पशु से मानव में संचरण संक्रमित जानवर के काटने या खरोंच, बुशमीट (जंगली स्तनधारी, सरीसृप् अथवा उभयचर पशु पक्षियों का मांस) का सेवन करने से, शरीर के तरल पदार्थ या घाव सामग्री के साथ सीधे संपर्क अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क, यथा दूषित बिस्तर, के माध्यम से हो सकता है। मानव से मानव संचरण विभिनन प्रकार के निकट संपर्क के द्वारा होता है, जैसे – आमने- सामने सम्पर्क होना (यथा बात करना या एक- दूसरे के निकट सांस लेना, जिसमें ड्रॉपलेट अथवा कम दूरी के एरोसोल के माध्यम से संचरण हो सकता है) त्वचा से त्वचा का संपर्क( यथा स्पर्श अथवा योनि/गुदा गार्गीय संभोग), मुंह से मुंह अथवा या मुंह से त्वचा का संपर्क (यथा चुंबन, ओरल सेक्स या त्वचा को चूमना), मंकीपॉक्स से संक्रमित व्यक्ति द्वारा छुये गए कपड़ो, बिस्तर, तौलिए, वस्तुओं, इलेक्ट्रनिक्स तथा सतहों पर मंकीपॉक्स वायरस कुछ समय तक बने रह सकता है। वायरस गर्भावस्था के दौरान भ्रुण में तथा जन्म के दौरान अथवा उपरान्त त्वचा से त्वचा सम्पर्क के माध्यम से या मंकीपॉक्स से संक्रमित माता-पिता से निकट संपर्क के द्वारा शिशु में भी फैल सकता है। मंकीपॉक्स रोक का क्लिनिकल प्रेजेंटेशन संपूर्ण विश्व से वर्ष 1980 में उन्मूलित एक अन्य संबंधित ऑर्थोपॉक्स वायरस के संक्रमण के द्वारा फैलने वाले चेचक रोग के समान होता है। मंकीपॉक्स का वायरस चेचक की तुलना में कम संक्रामक है और कम गंभीर बीमारी का कारण बनता है। इस रोग की इनक्यूबेशन अवधि आमतौर पर 6- 13 दिन होती है, लेकिन यह 5- 21 दिनो तक भी हो सकती है। प्रभावित व्यक्ति आमतौर पर इस अवधि के दौरान संक्रामक नही होते है। संक्रमित व्यक्ति दाने के प्रकट होने से 1- 2 दिन पहले तक रोग को प्रसारित कर सकते हैं तथा पपड़ी के गिर जाने तक संक्रामक रह सकते है। रोग के लक्षण, बचाव के उपायों एवं शंका समाधान के लिए जन – मानस को उपलब्ध कराये जाने हेतु राज्य स्तरीय हेल्पलाइन नंबर- 18001805145