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आज ही बिछड़े थे याद आ गए तुम.. डाक्टर उमाशंकर तिवारी

उबैदुर रहमान सिद्दीकी

गाजीपुर। उमाशंकर तिवारी साहब गाजीपुर के नव गीतकार मे एक बड़ा नाम था बल्कि आज भी है..कईं बार मुलाकाते हुई और कई बार मेरे घर पर आए और आकर कहते कि आपके यहाँ आकर एक दिली सकून मिलता है, महसूस होता है कि कोई शहर मे अपना है . एक कप चाय ब्रीटानिया के दो थिन आरारोट के बिस्कुट के साथ पीते… बस! उम्र मे, काफी बड़े थे लेकिन हम दोनों के दिल और सोच एक- सामान थे. कभी अपने इश्क के चर्चा करते और कभी मुशायरों और कवि सम्मेलन के अनुभव शेयर करते . लेकिन एक खास बात यह थी कि बातचीत के दौरान, उनकी हल्की हल्की सी मुस्कराहट पर उनका शालीन चेहरा बड़ा खूबसूरत लगता. सुंदर तो वो थे ही बल्कि चेहरे पर एक गंभीर हुस्न था। होली मे हर साल उनके घर हमलोग इकट्ठा होते, खाते पीते और वहां आए कवियों और शायरों के कुछ गज़ले सुनी जाती, उनके गीत सुनकर वापस आते. वे भी किया भले दिन थे? हाँ उनकी बिटिया मे थोड़ा थोड़ा गुण उनका सा दिखता है, जो आज अपने पिताश्री जैसी एक अच्छी लेखिका के रूप मे उभर कर नाम रोशन कर रही है। मैंने गाजीपुर के कई मशहूर कवियों और शायरों के आधे घंटे से लेकर एक घंटे तक के विडीओ मे उनके इंटरव्यू लिए थे जिनमे उमाशंकर आहाब का भी एक था जिसमे उनकी काव्य यात्रा, लेखन शैली, माता पिता, शिक्षा आधार था. उसमे उन्होंने अपने कई राज़ खोले, साहित्यिक यात्राओं का ज़िक्र किया है. जीवन मे क्या क्या कठिनाईयां झेलनी पड़ी थीं, सबका उन्होंने खुले मन से ब्यान फ़रमाया है।

 

 

 

 

 

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