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गौतम बुद्ध और सम्राट अशोक आये थे गाजीपुर

उबैदुर रहमान सिद्दीकी

गाजीपुर। बहुत कम लोगों को मालूम होगा क़ि सारनाथ मे सनादेश देने के बाद बुद्ध देव जिन्हे गौतम बुद्ध से भी जाना जाता है, ने गाज़ीपुरw के सैदपुर क्षेत्र मे सात दिनों तक विश्रण कर ब्राह्मण तथा तत्कालीन समाज को उपदेश दिया था. जब अशोक राजा हुए तो अपने धर्मगुरु उपगुप्त के हमराह गंगा नदी से कन्नौज से कश्ती द्वारा  गंगा गोमती संगम पर उतरकर बुद्ध के पद चिन्होन को खोजते हुए मसोंन डीह नामक ग्राम मे पहुचे थे. अशोक राजा को स्थानीय लोगो से जहाँ जहाँ मालूम होता, वहां वह संघराम, चैत्य तथा अनेकों विहार निर्माण करता जाता. उस स्थान पर स्तूप का निर्माण कराया जिस स्थान पर क्षेत्र के निवासियों ने सबसे पहले बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था। चुंकि गाज़ीपुर के अधिकतर लेखक जो कि इतिहासकार नहीं है, हर मैदान मे अपनी पैठ बनाने का प्रयास करते है और बगैर तथ्यों को परखे, लिख छोड़ते है, जिससे जनमानस मे गलत बात फैल जाती है, उदाहरण के तौर पर लार्ड कार्नवलिस का देहांत गौसपुर मे होना कहा और लिखा जाता है जबकि ऐसा नहीं है, बल्कि कार्नवालिस के प्राइवेट सीक्रेटरी जो उसके साथ साथ चल रहा था और कदम कदम पर उसके स्वास्थ्य की सूचना अपने से बड़े अधिकारीयों को लगातार देता जा रहा था कि अब सेहत ऐसी है. उसी के पत्र से मालूम होता है कि गोराबाजार मे गंगा तट पर एक आलीशान कोठी थीं जिसमे आठ दिनों तक लार्ड कार्नवालिस का इलाज चलने के बाद देहांत हुआ था. उसी तरह, हमें गाज़ीपुर मे बुद्ध तथा अशोक राजा के आने के प्रमाण  फ्रांससीसी लेखिका मोंनज़ीयर एस जुलियांस द्वारा चीनी भाषा से फ्रांससीसी भाषा मे विश्व मे प्रथम बार हुएग सांग की यात्रा वृत्ततांत का अनुदित किये जाने से पता चला. उसके बाद ब्रिटिश इतिहासविदो मे वाल्टर्स तथा बेल द्वारा अंग्रेजी मे अनुवाद हुए, तभी इन्ही से हमें मालूम पड़ा कि बुद्ध देव तथा अशोक राजा भी हमारे जनपद गाज़ीपुर मे आये थे। बौद्ध साहित्य से यह भी पता चलता है कि बुद्ध देव ने इस क्षेत्र का कई बार भ्रमण किया था तथा हमारे क्षेत्र मे बहुत से सुत्तो का अपने अनुयायियों को बताया था और अहिंसा पर आधारित आचरण प्रधान धर्म की स्थापना की . ब्राह्मचर्य पर बल दिया, सुख और विलास से दूर रहने की शिक्षा दी और समाज के उपेक्षित और शोषित वर्गों को धर्म के क्षेत्र मे समानता का दर्जा दिया. इस तरह औरिहार, मसोन  डीह, जहूरगंज, भितरी, सैदपुर, गौसपुर, ज़मानियाँ, मुहम्मदाबाद आदि बौद्ध धर्म के प्रारंभिक प्रचार और प्रसार के प्रमुख केंद्र बनकर उभरे तथा इस क्षेत्र के निवासियों ने सबसे पहले बौद्ध धर्म को ग्रहण किया। हुएन सांग अपनी यात्रा वृत्ततांत मे लिखता है क़ि जब ‘ चेन चू’ ( जनपद गाज़ीपुर का पुराना नाम वीरो की धरती) प्रदेश मे पहुंचा तो यहां बौद्ध धर्मलंबियों के साथ अन्य धर्मालंबियों  की भी बड़ी संख्या मिली. यहाँ लगभग दस संघाराम है जिनमे 1000 से भी कम हीनयान समप्रदायी बौद्ध अनुयायी निवास करते है. भिन्न धर्मावलंबियों के भी लगभग 20 मंदिर है, जिनमे वे अपने अपने प्रथानुसार पूजा पाठ करते है. आगे वाह लिखता है कि शहर के पश्चिमोत्तर वाले संघराम मे एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है. इस स्तूप के नीचे बुद्ध देव के बहुत से अवशेष रखे है. इसके अतिरिक्त उसी के पास गत तीनों बुद्ध के बैठने और चलते फिरने के भी  चिन्ह वर्तमान है. इसके निकट ही मैत्रीय बौद्धिसत्य की एक भव्य मूर्ति है. यद्पि कि इसका आकर छोटा है परन्तु बेहद आकर्षक है,जिसमे अजीब से कशिश फूट पडती दिखती है। इसके अतिरिक्त भितरी ग्राम के अलावा ज़मानियाँ से पांच किलोमीटर दूर शाहपुर उर्फ़ लटिया मे अशोक राजा के प्रस्तार स्तम्भ है, जिसे लेकर अब विवाद खड़ा है. वैसे देखा जाये तो ब्रामण तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने अपने अपने केंद्र खोले थे. दोनों की कला पूर्ण कृतियों के चिन्ह अभी तक भग्न अवस्था मे विद्द्यमान है तथा बराह, नंदी, शिवलिंग तथा बुद्ध देव की पुरातन मूर्तियां सैदपुर, bhitri, मसोंन डीह, औरिहार, ज़हूरगंज, सैदपुर, गौसपुर, ज़मानियाँ आदि क्षेत्रों मे दोनों धर्मों के उपासक निवास करते थे. लेकिन गौसपुर मे अशोक राजा के स्तम्भ के शीर्ष भाग का सिंह, बुद्ध देव की भव्य मूर्ति का शिव परिसर मे होना जिला के गौरव है। बुद्ध देव के बाद अशोक राजा भी गंगा नदी के किनारे किनारे सैदपुर से होकर गाज़ीपुर, गौसपुर, मुहम्मदाबाद तथा बक्सर की ओर चले गए थे. विस्तार के लिए हुएग सांग की यात्रा वृत्ततांत पढ़िए।

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