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गाजीपुर: जहूराबाद के मुहम्मद गौस ने 1500 ईस्वी में योग पर आधारित लिखी थी बहरुल हयात पांडुलिपि

उबैदुर्रहमान सिद्दीकी

गाजीपुर। देश भर में बहुत धूम धाम से योग दिवस मनाया जा रहा है. ब्रिटिश लाइब्रेरी के संग्रहालय में गाजीपुर जिला के जहूराबाद निवासी सैय्यद शाह मुहम्मद गौस द्वारा लिखित अरबी लिपि की एक पांडुलिपि ” बहरूल हयात ” है, जो योगशास्त्र पर आधारित है. सैयद गौस ग्राम जहूराबाद में 1500 ईस्वी में सैयद खतिरुद्दीन के घर पैदा हुए जिनके दो भाई सैयद शाह बहलोल उर्फ फूल शाह तथा सैयद शाह मुराद अली थे. गांव में एक तालाब गौसी तालाब से आज भी क्षेत्र में लोकप्रिय हैं तथा इन लोगो की कुछ पवित्र अवशेष तालाब के निकट दफन हैं। 1692 की फारसी पांडुलिपि “नसबनामा अस्सादत गाजीपुर ” से पता चलता है कि शाह गौस एक महान लेखक, कवि और दार्शनिक होने के साथ-साथ एक प्रख्यात योग गुरु भी थे, जिन्होंने प्राचीन योग ग्रंथों की व्याख्या करने वाली अपनी प्रसिद्ध रचनाओं के रूप में जवाहर-ए-खमसा और बहर अल-हयात की रचना की. शाह गौस ने अपने साहित्य में समकालिक भारतीय संस्कृति की एक अमिट विरासत छोड़ी है बल्कि उन्होंने न केवल कला, संस्कृति और साहित्य में अपनी भागीदारी के साथ, बल्कि विभिन्न रूपों के अनुभव के माध्यम से भी भारत की सांस्कृतिक योग प्रथाओं से जुड़े रहे. इस पांडुलिपि में 22 योगासन दिए है जिनमे तरीका भी लिखा है. साथ ही उनके लाभ भी बताए गए गए हैं। शाह मुहम्मद गौस जहूराबादी तो बादशाह अकबर तथा संगीत सम्राट तानसेन के धर्म गुरु थे तथा उनके बड़े भाई शाह फूल जो बादशाह हुमायूं के धर्म गुरु थे, जैसे सूफी फकीरों ने सदियों पुरानी भारतीय विरासत को जनपद गाजीपुर में बनाए रखने का प्रयास किया. उस समय उन्होंने जगह जगह योग का अभ्यास किया और कराया और उसका प्रचार किया, जिससे बादशाह हुमायूं से लेकर बादशाह जहांगीर तक जनपद में अनेक योगासन सेंटर्स थे,  हालांकि तत्कालीन कुछ कट्टरपंथी मौलवियों ने इसे लेकर विवाद खड़ा कर दिया, जो योग को अपने शुद्धतावादी धार्मिक सिद्धांतों के साथ असंगत मानते थे। ऐसे समन्वयवादी विचारों और प्रथाओं के कारण, हजरत शाह गौस का प्रतिगामी मौलवियों द्वारा कड़ा विरोध किया गया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बल्कि, उन्होंने फारसी में योग ग्रंथों पर अपना व्यापक अनुवाद और कठोर शोध जारी रखा. यह केवल उन्हीं के कारण था कि भारतीय योग ग्रंथों का बाद में अरबी, तुर्की और उर्दू और अन्य तुर्क भाषाओं में अनुवाद किया गया। “मुगल शासनकाल में गाजीपुर के सूफी संत” नामक पुस्तक में है कि,”शाह गौस द्वारा प्रस्तुत योग ग्रंथों के सबसे उल्लेखनीय अनुवादों में से एक बहर अल-हयात (जीवन का महासागर) है, जो फारसी अनुवाद में अमृतकुंड की व्याख्या है – जो योग पर प्रमुख संस्कृत ग्रंथों में से एक है।

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