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बीएचयू के कृषि वैज्ञानिको ने धान की दो नई प्रजातियो का किया खोज, कम पानी में पैदा होगी फसल

वाराणसी। सोलह साल बाद बीएचयू के कृषि वैज्ञानिकों ने धान की नई प्रजाति विकसित की है। दो प्रजातियों आईटी 10 एल-149 और आईआर 10 एल-152 के क्रॉस से विकसित मालवीय मनीला सिंचित धान-1 (एमएमएसडी-1) अब तक की सबसे कम समय में तैयार होने वाली धान की प्रजाति है। इसे ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।मई 2023 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से पास होने के बाद धान की यह प्रजाति भारत सरकार की तमाम कसौटियों पर भी खरी उतरी है। केंद्र सरकार ने बिहार और ओडिशा में इसे खेती के लिए जारी कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इसे हरी झंडी दे दी है। अगले खरीफ सीजन से धान की यह प्रजाति किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय चावल रिसर्च अनुसंधान फिलीपींस के सहयोग से बीएचयू के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर प्रो. श्रवण कुमार सिंह और उनकी टीम ने 2006 में एमएमएसडी-1 को विकसित करने पर काम शुरू किया। ज्यादा उत्पादन के कारण 1970 के दशक में मिरैकल राइस के नाम से चर्चित इरी की प्रजाति आईआर-8 से प्रभावित होकर बीएचयू के वैज्ञानिकों ने रिसर्च शुरू किया।क्रॉस, शुद्धीकरण, परीक्षण और दस्तावेज की विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद मई में आईसीएआर ने इसे पास कर केंद्र सरकार के पास भेज दिया। परीक्षण रिपोर्टों और मानकों के बाद केंद्र सरकार ने अपने ताजे गजट में इस प्रजाति को पूर्वी भारत के धान उत्पादक तीन जिलों के लिए मान्यता दे दी है। फिलीपींस की ओर से राइस ब्रीडिंग के को-ऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी निभा चुके बीएचयू के एग्रीकल्चर साइंस में जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर प्रो. श्रवण कुमार सिंह ने बताया कि एमएमएसडी-1 धान की फसल सीधी बुवाई और रोपाई दोनों विधियों के लिए मुफीद है। सीधी बुवाई में यह 110 दिन और रोपाई करने पर 118 दिन में तैयार हो जाती है। जबकि अन्य प्रजातियों को तैयार होने में 135 से 140 दिन का समय लग जाता है।

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