गाजीपुर। देवकली में आयोजित मानस सम्मेलन के छठें दिन बाराबंकी से आयी हुई सोनम शास्त्री ने कहा कि मानव जीवन बङे भाग्य से मिला हॆ जो देवताओं को भी दुर्लभ हॆ।चॊरासी लाख योनियों मे भटकने के पश्चात परमात्मा ने जीव को इस धराधाम पर भेजा हॆ ताकी भजन कर आवागमन के भव बंधन से मुक्त हो सके। जनकपुर जाते समय श्रीराम ने ताङका का बध कर , अहिल्या का उध्दार किया। राजा जनक के आदेश पर बंदीजन ने प्रतिज्ञा सुनाया।इसी बीच रावण व बाणासुर का वार्तालाप के पश्चात रावण ने धनुष की तरफ देखा तो उसे इसारा मिला इस धनुष को वही तोङ सकता हॆ, जिसको 14 वर्ष का बनवास,पिता की मृत्यु ,नारी का हरण तथा धनुष तोङने वाला ही मेरा सर्वनाश करेगा।सभा मण्डप मे सभी राजाओं को देखने के पश्चात वह समझ गया यह सभी गुण व लच्छन श्रीराम मे ही हॆ।धनुष को बिना तोङे यह प्रतिज्ञा किया सीता को लंका अवश्य दिखाउंगा। गुरु के आदेश से श्रीराम ने धनुष तोङा जिससे सीता का श्रीराम के साथ विबाह हुआ।श्री राम विबाह पर विस्तृत प्रकाश डाला,गीत गारी,भजन से पुरा पाण्डाल झूम उठा ,तत्पश्चात लक्ष्मण के दण्डवत होने पर श्रीराम के झुकते ही मां सीता ने गले मे जयमाल डाला।