शिवकुमार
गाजीपुर। आजादी के दीवानों की गाथा लिखना आसान नहीं है खून से लिखे इतिहास को कलम से लिखना क्या इससे इंसाफ हो पाएगा ऐसे ही खून के समुद्र में डूबी हुई नंदगंज के क्रांतिकारियों की दास्तां है ।गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में नन्दगज के मुश्ताक अहमद,शहीद जुनैद आलम,बाबु भोला सिंह, रामधारी पहलवान,डोमा लुहार ने जो वीर रस की गाथा लिखी है वो इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। आज उसको फिर से याद करते हैं शाहिद जुनेद आलम के भाई मुस्ताक अहमद अपनी डायरी में लिखते हैं कि अगर उस दिन आंधी और तूफान नहीं आया होता तो हम सभी क्रांतिकारी नंदगंज थाने पर झंडा फहराकर और रेलवे स्टेशन को जलाकर गाजीपुर की तरफ कुच करने ही वाले थे तब तक जोरदार आंधी ने हमारे रास्ते को रोक दिया नहीं तो हम लोग सैकड़ो क्रांतिकारियों के साथ गाज़ीपुर पहुंच कर मुख्यालय पर कब्जा कर गाजीपुर को भी आजाद करवा दिए होते आंधी और बारिश ने हम लोगों को तीतर बीतर कर दिया था। समय बर्बाद होने से अंग्रेज अफसर अपनी बलोच सेना के साथ हम लोगों को नंदगंज में घेर लिया और फायरिंग करके जुनेद आलम और विश्वनाथ समेत कई लोगों को शहीद कर दिया सिर्फ दो लोगों का नाम ही दस्तावेजों में मिलता है बाकी लोगों का जिक्र अंग्रेज हुकूमत ने छुपा लिया था काफी बड़ी तादाद में लोग घायल भी हुए थे मरने वालों की भी बहुत बड़ी तादाद थी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा विमोचित भारत सरकार की पुस्तक डिक्शनरी ऑफ में मार्टायरस वॉल्यूम 2 पेज नंबर 347 में जुनेद आलम को नंदगंज थाने और रेलवे स्टेशन जलाते समय में गोली मारने का जिक्र दर्ज है आज उनको श्रद्धांजलि देने का दिन है। सभी महान शहीदों और घायल क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जिनके ऊपर अंग्रेजो ने ज़ुल्म की इन्तेहा कर दिया था।