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पीजी कालेज गाजीपुर: कीटनाशकों का मछलियों की जीवन क्षमता और वृद्धि, पर पड़ता है हानिकारक प्रभाव: विजय शंकर गिरी

गाजीपुर। स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर में पूर्व शोध प्रबन्ध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महाविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ तथा विभागीय शोध समिति के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार हाल में सम्पन्न हुई, जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे विज्ञान संकाय के जन्तु विज्ञान विषय के शोधार्थी विजय शंकर गिरी ने अपने शोध प्रबंध शीर्षक “गाज़ीपुर जिले में गंगा नदी में मछली कतला कतला की शारीरिक गतिविधियों पर कीटनाशकों का प्रभाव” नामक विषय पर शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि गंगा नदी में औद्योfगक क्षेत्रों और कृfष क्षेत्रों में प्रयोग होने वाले कीटनाशक पदार्थ वर्षा एवं बाढ़ के द्वारा पहुंच रहे हैं जिनसे जलीय परतंत्र दुष्प्रभावित हो रहा है। प्रस्तुत शोध प्रबंध में गंगा के जल का विभिन्न मानकों पर परीक्षण करके कतला कतला मछली जिसे भांकुर भी कहा जाता है उसे गंगा नदी से एकत्रित करके कीटनाशक जैसे फेनिट्रोथियन, कार्बोफ्यूरॉन (फुरडॉन), बीएचसी (बेंजीन हेक्साक्लोराइड) जिसे लिंडेन कहते है को अलग-अलग मात्राओं में रखकर मछली के अंदर अनेक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि कीटनाशकों का मछलियों की शारीरिक क्रियाओं पर स्थायी और अस्थायी प्रभाव पड़ता है, जो उनकी जीवन क्षमता, वृद्धि, और आबादी को नुकसान पहुंचाता है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है, घातक रसायनों के संपर्क में आने पर मछलियों के विभिन्न शारीरिक तंत्र प्रभावित होते हैं, ये मछलियों के तंत्रिका तंत्र को बाधित कर देते हैं, जिससे असामान्य व्यवहार, मांसपेशियों में झटके, और गति में कमी हो जाती है। कीटनाशक जल में घुले होने पर ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाती हैं। इससे मछलियों के गलफड़े (gills) प्रभावित होते हैं, और उन्हें श्वसन में कठिनाई होती है, ऑक्सीजन की कमी से ऊर्जा उत्पादन में कमी हो जाती है जिससे अंगों में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और शरीर के अंग ठीक से कार्य नहीं कर पाते। उनका प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता हैं, जिससे वे संक्रमण और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थी विजय शंकर गिरी ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। तत्पश्चात समिति के चेयरमैन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह, मुख्य नियंता प्रोफेसर (डॉ०) एस० डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक डॉ० इन्दीवर रत्न पाठक, जन्तु विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० रागिनी अहिरवार प्रोफे० (डॉ०) अरुण कुमार यादव, डॉ० रामदुलारे, डॉ० कृष्ण कुमार पटेल, डॉ० रविशेखर सिंह, डॉ० अमरजीत सिंह ,डॉ०कमलेश, डॉ० शिवशंकर यादव, डॉ०धर्मेंद्र, डॉ० प्रदीप रंजन, डॉ० उमा निवास मिश्र, प्रदीप सिंह, एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत मे जन्तु विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ० रागिनी अहिरवार ने सभी का आभार व्यक्त किया और संचालन अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह ने किया।

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