उबैदुर्रहमान सिद्दीकी
गाजीपुर। शहर गाज़ीपुर के चार ऐतिहासिक मक़बरों मे यह मक़बरा गाज़ीपुर शहर के कोतवाल अफगानी सरदार सैयद मोहसिन खान का है. यह 1582 मे बादशाह अकबर द्वारा शहर कोतवाल नियुक्त था तथा बीस वर्ष तक यह शहर के अंदरूनी प्रशासन की देखभाल करता रहा. बादशाह अकबर की फ़ौजी मुहीम मे सेना की टुकड़ी का नेतृत्व भी किया. 1573 मे बंगाल के दाऊद खान किरानी ने हकूमत के विरुद्ध जो बगावत कर दी थीं तो सैयद मोहसिन भी दास हज़ारी पैदल फ़ौजी दस्ते मे बगावत को दबाने के लिए शामिल था. बादशाह के नव रत्नो मे राजा बीरबल, राजा मानसिंह, राजा भगवंत दास, राजा टोडर मल, खांखाना, अबुल फज़ल, फैज़ी, हकीम ऐनुल मुल्क, शहज़ादा सलीम जहांगीर, मारियम ज़मानी आदि भी थीं. जबकि बादशाह अकबर स्वम गंगा नदी से होने दो हज़ार सैनिकों के बेड़ों के साथ शहर गाज़ीपुर के किनारे पड़ाव डाल कर चार दिन रुका रहा और शहर की प्रशासनिक व्यवस्था तथा अनाज मंड़ियों की ताज़ा रिपोर्ट का जायज़ा लिया था. तत्कालीन गाज़ीपुर की मंड़ियों की क्या स्थिति थीं, इसे विस्तार से अबुल फज़ल ने अपनी पुस्तक आईना अकबरी मे लिखा है. (देखिये अकबरनामा, तारीख बदायूनी)- शहर गाज़ीपुर की प्रशासनिक व्यवस्था चुस्त दुरुस्त हो, राजा टोडर मल ने कई सुधार किये और शहर की देखभाल हेतु सैयद मोहसिन खान को कोतवाल नियुक्त किया. अपने समय का यह शानदार मक़बरा शहर गाज़ीपुर के पश्चिम मालगोदाम रोड, रोडवेज़ बस स्टैंड और ईदगाह के पीछे स्थित है जहाँ एक खूबसूरत बाग हुआ करता था. बाग़ तो कभी का खत्म हो चूका है. जहाँ कभी किस्म किस्म के खुशबूदार फूल और तरह तरह के मेवादार पेड़ लगे थे. पास मे गुलाब, चमेली, जूही के फुलो के खेत थे. यह इलाका मुगलानी चक से पुराने कागज़ात मे दर्ज है.. इसका क्षेत्रफल बड़ा,रेलवे स्टेशन के आसपास तक जो अब फुल्लनपुर कहलाता है,था. अवधकाल (1734) से पूर्व किसी भी जिले का कलक्टर तथा एसपी संयुक्त पद फौजदार का होता था. पूरा जनपद इसके मातहती मे था और एक पद कोतवाल का भी होता था जो पुरे शहर की निगरानी रखता था. शहर से लगी पुलिस चौकिया रहती थीं जहाँ से अंदर आने वाली वस्तुओं की निगरानी रखनी पडती तथा माल अंदर ले जाने पर टैक्स निर्धारित होता था. सैयद मोहसिन खान अफगानी पठान था और तत्कालीन फौजदार (1581 ईस्वी ) का लेफ्ट हैंड था, तथा उसे शहर की अनाज मंड़ियों पर नज़र भी रखनी पडती थीं कि कोई व्यापारी सरकार द्वारा तयशुदा मूल्य से अधिक मूल्य ना लेने पावे अथवा जो बेचने के लिए अनाज या कोई खाद पदार्थ है, नापतोल मे हेराफेरी ना कर परवाये या खाद्यड्यान्य की वस्तुएँ बासी या घटिया माल की ना हो- रोटी, पाव रोटी, शिरमाल मे शुद्धता बाकी रहे या कोई फल यदि है तो अंदर से सड़ा ना रहे. इसके अलावा शहर मे जो सराय हिन्दुओं और मुसलमान यात्रियों के लिए होती थीं, वह साफ सुधरी के साथ पवित्रता का भी ध्यान रहे. निगरानी करना होता था. इसके लिए उसे हिन्दू यात्रियों की सुख सिविधा के लिए हिन्दू स्टाफ रखना पड़ता तथा मुस्लिम यात्रियों के लिए अलग मुस्लिम स्टॉफ रखा जाता था. उनके खान पान हेतु हिन्दू और मुस्लिम लोग अलग – अलग बवार्ची नियुक्त होते.उन यात्रीयों को गंतव तक ले जाने के लिए इक्का गाडी की भी व्यवस्था करने की जिम्मेदारी शहर कोतवाल की होती थीं कि यात्री बगैर लुटे पिटे सकुशल गंतव्य तक पहुँच जाये. दूसरे शहरों से आई चिट्ठीयों को जो पोस्टमैन लाता, उनके ठहरने के लिए यह सराय काम मे आती थीं. डाकिया के पास जो डाक अथवा रकम रहती उसे कोई लूट ना ले जाये, उन्हें सुरक्षा देना भी शहर कोतवाल का काम होता था. इनके अलावा सैयद मोहसिन के जिम्मे यह भी काम था कि शहरियों के लिए पानी की व्यवस्था देखे. जहाँ आवश्यकता हो, कुआँ खोदवाए. बाकायदा कई विभाग उसकी मातहती मे था. चोरी डकैती से शहरीवासी सुरक्षित हो, ख़ुफ़िया तंत्र विभाग भी था. मुल्ज़िमों तथा बंदियों को अदालत तक ले जाने के कार्य को भी देखना पड़ता था. ऐसे गौरवशाली इतिहास के पन्नों मे दर्ज व्यक्ति का मक़बरा इतनी जर्जर हालत मे होगा, अफसोसनाक है. कोई जनपद मे ऐसी संस्था भी नही जो इस नाजुक ईमारत को दुबारा सुरक्षित कर सके.अब स्थिति तो और ख़राब हो चुकी है. इसकी देखरेख की आस भी खत्म हो चुकी है, क्यूंकि परिस्थियां बदल चुकी हैँ. बस कुछ साल का यह मक़बरा मेहमान है।