गाजीपुर। साहित्य चेतना समाज के तत्वावधान में ‘चेतना-प्रवाह’ कार्यक्रम के अन्तर्गत संस्था के संस्थापक अमरनाथ तिवारी ‘अमर’ के नगर के वंशीबाजार,स्वामी विवेकानन्द कालोनी-स्थित आवास पर स्वामी विवेकानन्द-जयन्ती मनायी गई;साथ ही एक सरस काव्यगोष्ठी आयोजित हुई।अध्यक्षता वरिष्ठ ग़ज़ल-गो नागेश मिश्र ने की एवं संचालन सुपरिचित नवगीतकार डाॅ.अक्षय पाण्डेय ने किया। मंचीय औपचारिकताओं के पश्चात् समस्त आगंतुक कवि गण एवं श्रोताओं ने स्वामी विवेकानंद जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन किया। उपस्थिति वक्ता-कवियों ने स्वामी विवेकानन्द जी के व्यक्तित्व,कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्र एवं मानवता को उनके महत्तर दाय को रेखांकित किया। समस्त वक्ताओं के वक्तव्यों का समन्वित सार रहा कि “स्वामी विवेकानन्द जी ने पौर्वात्य एवं पाश्चात्य संस्कृति-सभ्यता व धर्म के बीच एक सबल सेतु का काम किया। स्वामी जी ने सम्पूर्ण मनुष्यता को एक ऐसा मानवधर्म दिया जो मनुष्य-मनुष्य में विभेद नहीं बल्कि ऐक्य संस्थापित करे। स्वामी जी के उन्नत प्रगतिशील विचारों से देश के कर्णधार युवा पीढ़ी को सीख लेनी चाहिए। एक राष्ट्र पूर्ण उन्नत राष्ट्र तभी बनता है जब वहा निवास करने वाले मनुष्यों में पूर्ण मनुष्यता विकसित होती है।” स्वामी जी पर समस्त वक्ताओं की विचार-अभिव्यक्ति के पश्चात् सरस काव्यगोष्ठी का शुभारंभ डॉ.शशांकशेखर पाण्डेय की अतीव भावपूर्ण शिव-वंदना ‘शिव रूप को जिसने पाया उसका ही उद्धार हुआ’ से हुआ। काव्यपाठ के क्रम में डॉ.अक्षय पाण्डेय ने स्वामी विवेकानंद जी की पुनीत समृतियों को अपना मुक्तक “तनिक भी मन में न अब छलछन्द कोई चाहिए/ज्ञान का नायक भरोसेमंद कोई चाहिए/कुंद होती जा रही है आज मेधा देश की/इस समय को फिर विवेकानन्द कोई चाहिए/” समर्पित कर ख़ूब वाहवाही पायी।तदुपरान्त कवि आशुतोष श्रीवास्तव ने स्वामी जी पर केन्द्रित कविता “तुम राष्ट्र नायक, वेदों के ज्ञाता/धर्म संसद के प्रमुख वक्ता/सनातनीयों के तुम मुख्य प्रवक्ता/ तुम आर्यवर्त की शान रहे/परमहंस के परम शिष्य तुम/ भारत वर्ष का सम्मान रहे” प्रस्तुत कर प्रशंसित रहे।तदुपरान्त कवि हरिशंकर पाण्डेय ने अपनी पत्नी पर केन्द्रित कविता “इतने मीठे बोल सुनाती/ रूह मेरी हिल जाती है/फिर भी हू मैं दिया उसी का/और मेरी वो बाती है” सुना कर ख़ूब प्रशंसा अर्जित की। साहित्य चेतना समाज के संस्थापक, वरिष्ठ व्यंग्य-कवि अमरनाथ तिवारी ‘अमर’ ने “आगे बढ़ते उत्साही को/कब रोक सकीं दुर्गम राहें/मंज़िल खुद उसे बुलाती है/फैला करके दोनों बाहें” सुनाकर ख़ूब वाहवाही अर्जित की। काव्यपाठ के इस क्रम में संस्था के उपाध्यक्ष इं.संजीव गुप्त अपना गीत “हमदम मेरे हर दम तेरी राह निहारे ये नैना” प्रस्तुत कर प्रशंसित रहे। वीररसावतार ओज के कवि दिनेशचन्द्र शर्मा ने अपनी कविता “धर्म को चुनौती देना आसान नहीं/धर्म-कर्म के नाम पर लड़ाना खिलवाड़ नहीं/सियासत में भागीदारी करने वालों/भारत के धर्मग्रंथों को चुनौती देकर/सबको मूर्ख बनाना आसान नहीं”सुनाकर ख़ूब तालियाॅं बटोरी।वरिष्ठ हास्य-व्यंग्यकार विजय कुमार मधुरेश ने “जान गये गर अपने को तुम नाम अमर कर जाओगे/ कुछ भी नहीं कर पाओगे यदि दुनिया से डर जाओगे/साॅंपों के मुखिया ने अपनी बस्ती में ऐलान किया/डॅंसना मत नेता को किसी तुम वरना ख़ुद मर जाओगे” सुनाकर ख़ूब वाहवाही लूटी। युवा नवगीतकार डा.अक्षय पाण्डेय ने अपना नवगीत “ऑंखों ही ऑंखों में सबकुछ होता रहा फ़ना/घर का जैसा सपना था घर वैसा नहीं बना” सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए ताली बजाने के लिए विवश कर दिया। अध्यक्षीय वक्तव्योपरान्त नगर के ख्यात ग़ज़लगो नागेश कुमार मिश्र ने अपनी ग़ज़ल “ईमान ज़रूरत भर पाने नहीं दिया/बे-ईमानी सबकी औकात में नहीं” के अतिरिक्त अपने कई ख्यात शेरों को सुनाकर श्रोताओं की खूब तालियाॅं अर्जित की। इसी क्रम में संस्था के संगठन सचिव प्रभाकर त्रिपाठी की सांगीतिक अनुगीत की प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस सरस काव्यगोष्ठी में प्रमुख रूप से राजीव मिश्र, राघवेन्द्र ओझा, संगीता तिवारी,अंशुल त्रिपाठी,अंकुर आदि उपस्थित रहे। संस्था के उपाध्यक्ष इं.संजीव गुप्त का सभी के प्रति आभार-ज्ञापन के पश्चात् नगर के प्रतिष्ठित समकालीन कवि बालेश्वर विक्रम के असामयिक निधन पर सभी ने शोक व्यक्त किया।अन्त में हुतात्मा की शान्ति के लिए ईश-स्मरण एवं मौन धारण के साथ सभा समाप्त हुई।